विश्व में लगभग ७०० मीटर ऊंचा
‘मंदार’ एकलौता पर्वत है जिसका मुख्य पर्वत एक ही चट्टान से बना है. यह मुख्य
पर्वत अपनी श्रृंखलाओं में सबसे ऊँचा है।
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पुरात्व विशेषज्ञ बताते हैं कि
यह पर्वत ‘हिमालय’ से भी पुराना है।
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मंदार का लखदीपा विश्व का एकलौता मंदिर है जहां एक लाख दीये जलाने के लिए उतने ही ताखे बनाए गए थे जिसे अब भी इस भग्नावशेष में देखे जा सकते हैं।
पूरे भारतवर्ष में एक भी
प्राचीन मंदिर अब तक ज्ञात नहीं है जहाँ एक साथ एक लाख दीये जलाने की व्यवस्था हो।
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जनजातियों या आदिवासियों का सबसे बड़ा मेला मंदार पर्वत के नीचे प्रतिवर्ष १३ जनवरी को लगता है. सिर्फ रातभर की पूजा के लिए तकरीबन ८० हज़ार लोग अलग-अलग समूहों में यहाँ आते हैं और बेहद सर्दी में भी स्नान-पूजन-ध्यान-भजन-कीर्तन करते हैं. ये आदिवासी कई प्रान्तों से आते हैं और राम-लक्ष्मण की पूजा करते हैं. इतने कम समय के लिए इतनी बड़ी संख्या में आदिवासियों का धार्मिक प्रयोजन के लिए जुटने की खबर आपने भी कभी सुना और देखा भी नहीं होगा. इसे ‘साफ़ा होड़’ के अनुयायी कहते हैं।
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शंख कुंड के अन्दर पानी में डूबे पत्थर के शंख का शिल्प आपको अचंभित कर देगा कि इस दुर्गम में इसकी संरचना कैसे की गई होगी!
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