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Sunday, December 25, 2016


अर्जुन कम दुर्योधन ज्यादा यहाँ भरे पड़े हैं 
एक ओर कुटिल खलकामी तटस्थ खड़े हैं 
मगर न डिगता, पार्थ अकेला जूझ रहा है  
अखिल राष्ट्र अब उसकी भाषा बूझ रहा है
करो संधान शर का यह सटीक समय है 
हम सैनिक आपके हैंहाथों में वांग्मय है
शत्रु पर टूट पडें, चलो ये क्लेश मिटाएं 
एक दिवाली फिर से घर-घर में मनाएं।  
- रवि रंगरेज़

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