अर्जुन
कम दुर्योधन ज्यादा यहाँ भरे पड़े हैं
एक
ओर कुटिल खलकामी तटस्थ खड़े हैं
मगर
न डिगता,
पार्थ अकेला जूझ रहा है
अखिल
राष्ट्र अब उसकी भाषा बूझ रहा है
करो संधान शर का यह सटीक समय
है
हम
सैनिक आपके हैं, हाथों में वांग्मय है
शत्रु
पर टूट पडें,
चलो ये क्लेश मिटाएं
एक
दिवाली फिर से घर-घर में मनाएं।
- रवि रंगरेज़
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