HydroxyChloroquine Sulphate के साथ जुड़ा है एक राष्ट्रवादी भारतीय वैज्ञानिक का नाम। इन्होंने क्लोरोक्वीन फॉस्फेट बनाया था जो मलेरिया की दवा के तौर पर प्रयोग किया जाता था। तब सम्पूर्ण भारत में मलेरिया से बहुत लोग मरते थे। भागलपुर में गंगा के उत्तरी भाग में इससे मरनेवालों की संख्या ज्यादा ही थी।
भारत में इसे सबसे पहले बनाने वाले बंगाल केमिकल्स के जनक थे आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय। इन्होंने हिन्दू रसायन का इतिहास' लिखा जिसका मूल रूप A history of Hindu chemistry from the earliest times to the middle of the sixteenth century, A.D है। 'द ग्रीक एल्केमी' पुस्तक के लेखक बर्थेलो ने इनकी प्रशंसा मुक्तकंठ से की।
बंगाल केमिकल्स ने पहली बार इस दवा का निर्माण सन 1934 में किया था। यह देश में क्लोरोक्वीन दवाई बनाने की सबसे बड़ी कंपनी है जिसका पूरा नाम है - बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड। इसकी स्थापना आज से 119 साल पहले आचार्य राय ने की थी। पिछले काफी समय से बंगाल केमिकल्स ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पादन नहीं किया है।बंगाल केमिकल्स दरअसल क्लोरोक्वीन फॉस्फेट बनाती रही है, जिसका उपयोग मलेरिया की दवाई के रूप में होता रहा है। क्लोरोक्वीन फॉस्फेट का भी वही प्रभाव है जो हाल ही में चर्चा में आयी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट का। लेकिन बंगाल केमिकल्स ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट उत्पादन पिछले कुछ सालों से बंद कर दिया है। उल्लेखनीय है कि बंगाल केमिकल्स इस दवाई को बनाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की एकमात्र कंपनी है। नए नियमों के अनुसार इस दवाई को बनाने के लिए अब कंपनी को फिर से लायसेंस लेना होगा।
भागलपुर कॉलेज में केमिस्ट्री (रसायन शास्त्र) के लेक्चरर के तौर पर सन 1908 में योगदान देने वाले जोगेश चंद्र घोष इनके प्रिय शिष्यों में से एक थे। इनके बुलावे पर आचार्य 1909 में भागलपुर आए थे। तब वे प्रेसीडेंसी कालेज के रसायन विभाग में बतौर सहायक प्रवक्ता कार्यरत थे। तब वे यहाँ के ब्रह्म समाज से जुड़े लोगों से भी मिले थे। इनसे पहले आचार्य पीसी राय के पिता 'ब्रह्म समाज' के कार्यक्रम में हिस्सा लेने भागलपुर आए थे। आचार्य पीसी राय आजन्म कुँवारे रहे।
इन्होंने भागलपुर में कविराजों (आयुर्वेद के प्रैक्टिशनरों) को देखकर शिष्य जोगेन्द्र को कहा था कि आयुर्वेद का क्षेत्र व्यापक है और आप भारतीयों के कल्याण के लिए इस तरफ ध्यान दीजिये। इस बात का इतना व्यापक असर हुआ कि सेवामुक्त होने के बाद इन्होंने साधना औषधालय की स्थापना की। ढाका से आरंभ हुआ यह औषधालय पहले बंगाल के विभिन्न स्थानों में खुला। फिर भागलपुर और मुंगेर में भी। फिर चीन, उत्तरी अमरीका, अफ्रीका में। सनद रहे कि ये वही जोगेश चंद्र थे जिनकी हत्या पाकिस्तानी सैनिकों ने ऑपरेशन सर्चलाइट के दरम्यान 1971 में कर दी थी।
मातृभूमि, मातृभाषा और अपने आर्ष मनीषियों की महान परंपरा का पालन करनेवाले वैज्ञानिक डॉ. प्रफुल्ल चंद्र राय को आज मानवता की रक्षा करने के लिए अखिल विश्व याद करेगा।
भारत में इसे सबसे पहले बनाने वाले बंगाल केमिकल्स के जनक थे आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय। इन्होंने हिन्दू रसायन का इतिहास' लिखा जिसका मूल रूप A history of Hindu chemistry from the earliest times to the middle of the sixteenth century, A.D है। 'द ग्रीक एल्केमी' पुस्तक के लेखक बर्थेलो ने इनकी प्रशंसा मुक्तकंठ से की।
बंगाल केमिकल्स ने पहली बार इस दवा का निर्माण सन 1934 में किया था। यह देश में क्लोरोक्वीन दवाई बनाने की सबसे बड़ी कंपनी है जिसका पूरा नाम है - बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड। इसकी स्थापना आज से 119 साल पहले आचार्य राय ने की थी। पिछले काफी समय से बंगाल केमिकल्स ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का उत्पादन नहीं किया है।बंगाल केमिकल्स दरअसल क्लोरोक्वीन फॉस्फेट बनाती रही है, जिसका उपयोग मलेरिया की दवाई के रूप में होता रहा है। क्लोरोक्वीन फॉस्फेट का भी वही प्रभाव है जो हाल ही में चर्चा में आयी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट का। लेकिन बंगाल केमिकल्स ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन सल्फेट उत्पादन पिछले कुछ सालों से बंद कर दिया है। उल्लेखनीय है कि बंगाल केमिकल्स इस दवाई को बनाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की एकमात्र कंपनी है। नए नियमों के अनुसार इस दवाई को बनाने के लिए अब कंपनी को फिर से लायसेंस लेना होगा।
भागलपुर कॉलेज में केमिस्ट्री (रसायन शास्त्र) के लेक्चरर के तौर पर सन 1908 में योगदान देने वाले जोगेश चंद्र घोष इनके प्रिय शिष्यों में से एक थे। इनके बुलावे पर आचार्य 1909 में भागलपुर आए थे। तब वे प्रेसीडेंसी कालेज के रसायन विभाग में बतौर सहायक प्रवक्ता कार्यरत थे। तब वे यहाँ के ब्रह्म समाज से जुड़े लोगों से भी मिले थे। इनसे पहले आचार्य पीसी राय के पिता 'ब्रह्म समाज' के कार्यक्रम में हिस्सा लेने भागलपुर आए थे। आचार्य पीसी राय आजन्म कुँवारे रहे।
इन्होंने भागलपुर में कविराजों (आयुर्वेद के प्रैक्टिशनरों) को देखकर शिष्य जोगेन्द्र को कहा था कि आयुर्वेद का क्षेत्र व्यापक है और आप भारतीयों के कल्याण के लिए इस तरफ ध्यान दीजिये। इस बात का इतना व्यापक असर हुआ कि सेवामुक्त होने के बाद इन्होंने साधना औषधालय की स्थापना की। ढाका से आरंभ हुआ यह औषधालय पहले बंगाल के विभिन्न स्थानों में खुला। फिर भागलपुर और मुंगेर में भी। फिर चीन, उत्तरी अमरीका, अफ्रीका में। सनद रहे कि ये वही जोगेश चंद्र थे जिनकी हत्या पाकिस्तानी सैनिकों ने ऑपरेशन सर्चलाइट के दरम्यान 1971 में कर दी थी।
मातृभूमि, मातृभाषा और अपने आर्ष मनीषियों की महान परंपरा का पालन करनेवाले वैज्ञानिक डॉ. प्रफुल्ल चंद्र राय को आज मानवता की रक्षा करने के लिए अखिल विश्व याद करेगा।
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