अवध नरेश दशरथ से रोमपाद की बहुत अच्छी मित्रता थी। अपनी साली कौशल्या का विवाह राजा दशरथ से कराने में रोमपाद की बड़ी भूमिका थी। इस वैवाहिक संबंध के बाद कौशल और अवध की दुश्मनी समाप्त हो गई। इस बात को इस तरह से समझा जाए कि श्रीराम की माँ कौशल्या का विवाह दशरथ से कराने में अंग जनपद की बड़ी भूमिका रही। यह पहला कारण है।
दशरथ को कौशल्या से एक पुत्री हुई जिसका नाम शांता था। राजर्षि की सलाह पर अवध नरेश दशरथ ने इस पुत्री को अंग नरेश रोमपाद को पौषपुत्री के रूप में सौंप दिया। दशरथ के राजर्षि ने ग्रह-गोचरों की स्थिति के अध्ययन के उपरांत कहा था कि यह बालिका अयोध्या के हित में नहीं है अतएव इसे किसी को गोद में दे दिया जाए। कहा गया कि इस पुत्री के रहते राजा दशरथ के यहाँ कोई संतान पैदा नहीं होगी। अंग नरेश रोमपाद इस घड़ी में उनके हितरक्षक बने और शांता को सहर्ष पुत्री के रूप में ग्रहण कर लिया। यह दूसरा कारण रहा।
इस विलक्षण पुत्री शांता को अंग जनपद में लाने के बाद वार्षिनी से भी इन्हें एक पुत्री हुई जिसका नाम 'चतुरंग' (चतुरंग खेल की शुरुआत करनेवाली) रखा गया। किशोरवय में शांता का आमात्य सुमंत के कहने पर अंग जनपद के ऋषि विभंडक के अप्सरा उर्वसी से उत्पन्न पुत्र शृंगी के साथ विवाह कर दिया। इस विवाह के उपरांत ऋषि शृंगी ने अनुष्ठान कर अंग जनपद में वर्षा के लिए देवता वरुण और देवराज इन्द्र को प्रसन्न किया। कहते हैं कि पुत्री (शांता) का विवाह ऋषि शृंगी से कराकर दशरथ के हित में राजा रोमपाद ने एक और कार्य किया था। यह तीसरा कारण था। चूंकि, शांता सदैव दाशरथी के नाम से जानी गई। इसी कारण से कुछ लोगों को भ्रम होता है कि राजा रोमपाद का एक अन्य नाम 'दशरथ भी है।
अब जो सबसे बड़ी बात थी/ कारण था; वो यह कि अंग नरेश रोमपाद ने ऋषि शृंगी को प्रसन्न कर अवध नरेश दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया। मतलब कि जमाता (दामाद) ने अपने श्वसुर के लिए यह यज्ञ किया। लेकिन, इस यज्ञ में दशरथ मात्र एक यजमान रहे और शृंगी पुरोहित। इस यज्ञ के उपरांत ही राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न इस धरा पर आए। इससे पहले दशरथ ने संतान की इच्छापूर्ति के लिए कौशल्या के अतिरिक्त दो अन्य विवाह कर लिए लेकिन प्रारब्ध ऋषि शृंगी की प्रतीक्षा कर रहा था जिसका सूत्रधार अंग जनपद था। अयोध्या पर अंग जनपद का यह सबसे बड़ा उपकार था।
ऋषि शृंगी से शांता के विवाह का अर्थ था शृंगी के पिता विभंडक के क्रोध का कारण बनना। राजा रोमपाद ने यह जोखिम अपने सिर पर लिया। इस विवाह के बाद क्रोध से तप्त ऋषि विभंडक को भी इन्होंने ही झेला।
इस प्रसंग में ऋषि वाल्मिकी कृत 'रामायण' के श्लोकों को भी देखा जाए -
अङ्ग राजेन सख्यम् च तस्य राज्ञो भविष्यति।
कन्या च अस्य महाभागा शांता नाम भविष्यति।।
- (काण्ड-1, सर्ग-11, श्लोक-3)
अर्थ -
उनकी शांता नाम की पुत्री पैदा हुई जिसे उन्होंने अपने मित्र अंग देश के राजा रोमपाद को गोद दे दिया, और अपने मंत्री सुमंत के कहने पर उसका विवाह शृंगी ऋषि से तय कर दी थी।
अनपत्योऽस्मि धर्मात्मन् शांता भर्ता मम क्रतुम्।
आहरेत त्वया आज्ञप्तः संतानार्थम् कुलस्य च।।
- (काण्ड-1, सर्ग-11, श्लोक-5)
अर्थ -
तब राजा ने अंग के राजा से कहा कि मैं पुत्रहीन हूँ, आप शांता और उसके पति श्रृंग ऋषि को बुलवाइए मैं उनसे पुत्र प्राप्ति के लिए वैदिक अनुष्ठान कराना चाहता हूँ।
श्रुत्वा राज्ञोऽथ तत् वाक्यम् मनसा स विचिंत्य च।
प्रदास्यते पुत्रवन्तम् शांता भर्तारम् आत्मवान्।।
- (काण्ड-1, सर्ग-11, श्लोक-6)
अर्थ -
दशरथ की यह बात सुन कर अंग के राजा रोमपाद ने हृदय से इसबात को स्वीकार किया, और किसी दूत से शृंगी ऋषि को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए बुलाया।
आनाय्य च महीपाल ऋश्यशृङ्गं सुसत्कृतम्।
प्रयच्छ कन्यां शान्तां वै विधिना सुसमाहित।।
- (काण्ड-1, सर्ग-9, श्लोक-12)
अर्थ -
शृंगी ऋषि के आने पर राजा ने उनका यथायोग्य सत्कार किया और पुत्री शांता से कुशलक्षेम पूछ कर रीति के अनुसार सम्मान किया।
अन्त:पुरं प्रविश्यास्मै कन्यां दत्त्वा यथाविधि।
शान्तां शान्तेन मनसा राजा हर्षमवाप स:।।
- (काण्ड-1, सर्ग-10, श्लोक-31)
अर्थ -
(यज्ञ समाप्ति के बाद) राजा ने शांता को अंतः पुर में बुलाया और रीति के अनुसार उपहार दिए, जिससे शांता का मन हर्षित हो गया।
इक्ष्वाकु कुल में पैदा हुए श्रीराम अगर आज मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में दुनिया भर में पूज्य हैं तो इस हिस्से का बड़ा श्रेय #अंग_जनपद को भी जाता है। ...और इस मौके पर अंग जनपद (अब का भागलपुर केन्द्रित) को परित्यक्त किया जाना कितनी बड़ी ऐतिहासिक मानवीय भूल होगी !
हालांकि, अंग जनपद के मन्द्राचल पर्वत से अयोध्या में जन्मभूमि मंदिर निर्माण हेतु मिट्टी और जल विश्व हिन्दू परिषद द्वारा ले जाने की सूचना है मगर वह #चम्पा जो तब राजा रोमपाद की राजधानी थी यहाँ से किसी प्रकार की ऐसी सूचना नहीं है। हाँ, यह #चम्पा अब भी मौजूद है। यह अब एक विशाल टीला (Mound) है जिसपर अब हजारों घर बस चुके हैं। यहाँ बिहार पुलिस का एक विशाल प्रशिक्षण केंद्र भी है जिसे 18वीं सदी के 8वें दशक में स्थानीय कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलेंड ने स्थापित किया था। यह जगह अब भी 'चंपानगर' के नाम से ख्यात है और इस टीले को अभी 'कर्ण टीला' के नाम से जाना जाता है। इस टीले के किसी भी हिस्से में मामूली खुदाई होने पर अब भी सुंदर नक्काशीवाले पाषाण-स्तम्भ निकलते हैं। यहाँ से प्राप्त कुछ मूर्तियाँ, टेराकोटा खिलौने, मृदभांड, स्तम्भ कई संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रहे हैं। ये सभी तत्व इसके पुरातन होने की पुष्टि करते हैं। अब तो इस चम्पा नगर के वाह्य स्तंभों की खोज भी विद्वान इतिहासकारों ने कर लिए हैं। यह नगर उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे बसा हुआ है जहां कभी महर्षि पालकाप्य ने 'हस्त्यायुर्वेद' की रचना की थी जो महान राजा रोमपाद को उनके द्वारा दी गई सीख थी। आयुर्वेद की एक शाखा माने गए इस 'हस्त्यायुर्वेद' में हाथी के उपचार और रखरखाव के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसे 'गज आयुर्वेद' के तौर पर भी जाना जाता है।