प्राचीन अंगदेश (महाजनपद) के वर्तमान भागलपुर क्षेत्र में सड़कों के किनारे पेड़ों को पूजे जाने की परंपरा प्राचीन काल से है। इन्हें 'जख बाबा' कहा जाता है। लोग इन्हें लोक देवता की संज्ञा देते हैं। इनको पूजन-चढ़ावा देने की रीत है। कई जगहों में वार्षिक पूजा भी लंबे समय से होती रही है। गौर करने वाली बात है कि ये जख बाबा जिन रास्तों पर मिलते हैं वे सभी पथ प्राचीन काल के हैं। इन इलाकों के बूढ़े लोग जख के शौर्य की गाथा सुनाते हुए अब भी मिल जाएंगे।
यह जख संस्कृत के 'यक्ष' शब्द का अपभ्रंश है। यक्ष और रक्ष दो शब्द हैं। यक्ष वे शक्तियाँ हैं जो देव और लोक हितों के रक्षक हैं। रक्ष वे शक्तियाँ मानी गई हैं जिन्हें देवता और मनुष्यों का कल्याण बुरा लगता है। रक्ष से ही राक्षस शब्द बना है जो खलनायक की छवि उपस्थित करते हैं लेकिन यक्ष तो सदा से ही कल्याणार्थ माने गए हैं वजह यही है कि इनकी पूजा होती है।
धनपति कुबेर भी यक्ष हैं। इनको इनके संस्कारों के आधार पर यक्ष की श्रेणी में रखा गया है जबकि इनके सौतेले भाई रावण, कुंभकर्ण को रक्ष संस्कृति का संवाहक होने के कारण राक्षस कहा गया है।
#दीपावली_पूजन में अधिकतर लोग लक्ष्मी और गणेश का पूजन करते हैं जबकि कुबेर के बिना इनका पूजन सम्पूर्ण नहीं। किन्तु, याद रहे कि कुबेर देवता नहीं, यक्ष हैं। ये धन के संरक्षक हैं जो धन की चलायमानता को स्थायित्व देनेवाले के तौर पर प्रतिष्ठित हैं। वजह यही है कि इनके गण-गणिका को भारतीय रिजर्व बैंक के दिल्ली स्थित मुख्यालय के बाहर स्थापित किया गया है। ये दोनों कुबेर के प्रतिनिधि हैं।
कुबेर को उत्तर दिशा का दिक्पाल, अधिपति या स्वामी माना जाता है। शास्त्रों में 10 दिशाएँ माने गए हैं। इन सभी दिशाओं के अलग-अलग दिक्पाल हैं। यह भी कहा जाता है कि कुबेर सभी दिक्पालों के दिक्पाल हैं।
'महाभारत' में जिस उत्तरापथ की चर्चा होती है वो आज का जीटी रोड है। यह तामलुक (बंगाल) से आरंभ होकर तक्षशिला (अफगानिस्तान) तक जाती है। यह सड़क आज 4 देशों क्रमशः बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक जाती है। इस सड़क की चर्चा ग्रीक श्रोतों में भी मिलती है। यह भी कहा जाता है कि इसका पुनर्निर्माण अपने समय में चन्द्रगुप्त मौर्य ने भी कराया था और अशोक ने भी।
कहा गया है कि इस उत्तरापथ के उत्तरी क्षेत्र में कुबेर का वास था। सम्पूर्ण उत्तरी क्षेत्र का आधिपत्य कुबेर का था। इसलिए उत्तरी क्षेत्र में कुबेर को अधिक प्रतिष्ठा मिली है।
कुबेर की राजधानी अलकापुरी बताई गई है जिसे हिमालय पर एक हिस्से में बताया गया है। यह भी कहा जाता है कि कुबेर का उपवन #मंदराचल पर्वत पर था जिसे 'चित्ररथ वन' कहा गया है। इस चित्ररथ वन को चित्ररथ नामक एक गंधर्व ने तैयार कर कुबेर को दिया था। पौराणिक सूत्र बताते हैं कि मंदार के नीचे कई सघन वन थे जिन्हें अलग-अलग नामों से संबोधित किया गया है।
उत्तरापथ और प्राचीन अंग की राजधानी चम्पा को जोड़नेवाली सड़क अब SH-19 (इसे NH-133 की मंजूरी मिली है) के नाम से जानी जाती है। मुगल काल, ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश शासन के दौरान इसे भागलपुर-सूरी मार्ग कहा गया। यह सूरी नामक जगह आज सिउड़ी (पश्चिम बंगाल) के नाम से ज्ञात है जहां से जीटी रोड गुजरती है। यह सूरी शब्द अफगान शासक शेरशाह सूरी के सरनेम से लिया गया है। मंदार पर्वत इसी भागलपुर-सूरी मार्ग पर अवस्थित है। 'बिहार दर्पण' में गदाधर प्रसाद अंबष्ठ लिखते हैं कि यह भागलपुर की सबसे प्राचीन सड़क है। अपने समय में यह विशिष्ट व्यापारिक मार्ग था। इस सड़क के किनारे अभी भी कुछ यक्षों की उपस्थिति पेड़ों में है। इन यक्षों के नाम पर आसपास के ग्राम हैं। कुछ यक्षों को उनके पेड़ों के नाम से पुकारे जाने के प्रचलन है। इनके सामने से गुजरने वाले वाहन इन्हें कुछ सिक्के देकर गुजरते हैं। यह प्रथा प्राचीन काल में भी होने की जानकारी मिलती है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सूत्र बताते हैं कि उत्तरापथ / जीटी रोड के किनारे से यक्षों की काफी प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं जो विभिन्न संग्रहालयों में हैं। एक प्रतिमा पहली शताब्दी की भी मिली है जिसकी फोटो यहाँ संलग्न हैं।
मंदार से कुबेर की कुछ मूर्तियों के मिलने की जानकारी मिलती है लेकिन अब ये कहाँ हैं और कब की हैं; कोई अता-पता नहीं है।
[मेरी पुस्तक '#एक_प्राचीन_रहस्यमय_नगर_की_खोज' से]